अगर आप अपने जीवन में परेशान हैं और कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है या फिर गुरु पूर्णिमा के उपाय पर गुरु या चंद्र दोष से मुक्ति पाना चाहते हैं तो आप गुरु पूर्णिमा के दिन ये व्रत कथा एक बार जरूर देखें…
आध्यात्मिक महत्त्व और विधि
हिंदू धर्म में ज्ञान, प्रेरणा और दिशानिर्देश के लिए गुरु पूर्णिमा का बहुत महत्व है। गुरु वे होते हैं जो अंधकार में प्रकाश लाते हैं, अज्ञानता को दूर करते हैं और हमें जीवन का सही मार्ग दिखाते हैं। गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा और वेद पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। यह हर पर्व वर्ष आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। गुरु पूर्णिमा के दिन लोग महर्षि वेदव्यास जी की पूजा करके अपने गुरुजनों का भी आशीर्वाद लेते हैं।
इस श्लोक के अनुसार, गुरु (गुरु) को ब्रह्मा, विष्णु, महेश के समान माना जाता है और जिन्न की पूजा-अर्चना और व्यवस्था करने के लिए पावन पर्व मनाया जाता है। गुरु पूर्णिमा पर चंद्रमा की पूजा का भी विशेष महत्व होता है, चंद्रोदय होने के बाद चंद्रमा की पूजा की जाती है और चंद्रमा को अर्घ्य देने से चंद्र दोष की मुक्ति होती है।
चंद्र दोष निवारण के लिए गुरु पूर्णिमा व्रत की महत्ता
पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा की तिथि 20 जुलाई दिन शनिवार को 05 गणतंत्र 59 मिनट से शुरू होगी और 21 जुलाई दिन रविवार को दो बजे के बाद 03 उत्सव 46 मिनट पर समाप्त होगी। जिस तिथि में सूर्योदय होता है, वह तिथि उस दिन मान्य होती है। आषाढ़ पूर्णिमा तिथि में सूर्योदय 21 जुलाई प्रातः 05 बजे से 37 मिनट पर होगा। ऐसे में गुरु पूर्णिमा 21 जुलाई दिन रविवार को मनाया जाएगा। गुरु पूर्णिमा की सही तारीख 21 जुलाई ही है।
चंद्र दोष निवारण की पौराणिक कथा
गुरु पूर्णिमा व्रत कथा पौराणिक कथा के अनुसार, महर्षि वेदव्यास जी को भगवान विष्णु का अंश माना गया है। वेदव्यास जी की माता का नाम सत्यवती और पिता का नाम ऋषि पराशर था। महर्षि वेदव्यास जी को बचपन से ही आध्यात्म में बहुत रुचि थी। एक बार उन्होंने अपने माता-पिता से प्रभु के दर्शन की इच्छा प्रकट की और वन में तपस्या करने की अनुमति दी। वेदव्यास जी की यह बात सुनकर उनकी माता ने उन्हें वन जाने को मना कर दिया था।
माँ की इस बात को सुनकर वेदव्यास जी वन जाने की हिम्मत करने लगें। वेदव्यास जी के निधन की वजह से माता सत्यवती ने उन्हें वन जाने की विधि बताई। जब वेदव्यास जी वन की ओर जा रहे थे, तब उनकी माता ने कहा था कि जब तुम्हारे घर की याद आ जायेगी, तब तुम वापस आ जाना। माता के इस वचन को स्वीकार करते हुए वेदव्यास जी वन की ओर देखें।
वन में पर्यटक वेदव्यास जी कठोर तपस्या करने लगें। भगवान के आशीर्वाद से वेदव्यास जी को संस्कृत भाषा का ज्ञान हुआ। इसके बाद उन्होंने वेद, महाभारत 18 महापुराणों एवं ब्रह्म सूत्र की रचना की। लोगों को वेदों का ज्ञान देने की वजह से आज भी गुरु पूर्णिमा के दिन प्रथम गुरु के रूप में याद किया जाता है।
गुरु पूर्णिमा – अनुष्ठान
आशीर्वाद लें: अपने माता-पिता और बड़े भाई-बहनों से आशीर्वाद लेकर अपने दिन की शुरुआत करें। उनके पैर छूकर सम्मान दिखाएँ।
सुबह की प्रार्थना: स्नान के बाद, सकारात्मक ऊर्जा के साथ दिन की शुरुआत करने के लिए भगवान सूर्य (सूर्य देव) की पूजा करें।
भगवान गणेश की पूजा करें: ज्ञान और बुद्धि के देवता भगवान गणेश की पूजा और प्रसाद चढ़ाएँ।
अपने गुरु से मिलें: यदि आपके पास कोई आध्यात्मिक गुरु है, तो अपना आभार व्यक्त करने के लिए उनके पास जाएँ और ..